आज़ादी को 70 साल हो गये, अंग्रेजों से आज़ादी तो मिल गई लेकिन रूढ़िवादी परंपराओं ने हमें अभी तक घेरा हुआ है. यूं हम लोग स्वतंत्र हैं लेकिन सोच के दायरे ने हमें बांध रखा है. हमारे विचार स्वतंत्र नहीं हैं. जो स्वतंत्र विचार रखता है उसे हमेशा दबाने की कोशिश की जाती है. पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को हमेशा पीछे रखा गया व नीचे समझा गया. लेकिन अब जो हो रहा है वो भयानक है. नीचे दिए गए आंकड़ों पर एक नज़र डालेंगे तो आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि देश के हालात क्या हैं.
भारत में प्रतिदिन औसतन 6 रेप होते हैं साथ ही 15 दुराचार की घटनाएं सामने आती हैं. ये तो वे आंकड़े हैं जो दर्ज हुए हैं. ये आंकड़े भारत सरकार की संस्था नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के हैं जिसकी 2013 की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012 तक 24,923 रेप केस दर्ज किए गए थे. जिसमें से 98 फीसद केस ऐसे थे जिसमें लोगों ने माना कि उनके परिचितों के साथ इस तरह की घटनाऐं हुई हैं. यही नहीं साल 2012 से 2013 के बीच 1636 रेप केस दर्ज हुए. 2013-2014 के बीच 2166, 2014 से 2015 के बीच 2199, 2015 से 2016 के बीच 2155 और 2016 से 31 मई तक यह संख्या लगभग 400 के पार जा चुकी होगी. लेकिन ये आंकड़ा यहीं नहीं रुकता सिर्फ दिल्ली में ही 2016 तक 33 हजार से अधिक रेप के मामले दर्ज हैं.
आज़ाद भारत में आज महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के कई मामले सामने आ रहे हैं. 20 अगस्त को अख़बार के पन्नों में एक ही साथ छपी ख़बरें भी कुछ ऐसी ही दास्तान को बयां कर रही थीं जो जानकारी उपरोक्त रिपोर्ट में दी गई है. आख़िर महिलाओं के साथ अपराध के मामले लगातार क्यूं बढ़ते जा रहे हैं. क्यूं पुरुष हैवान बनता जा रहा है. नीचे आपको अख़बार की कुछ फोटोज़ दिखाई गई हैं जो वाकई विचलित करने वाली हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं पर सबसे ज्यादा अपराध वर्ष 2000 में (4037 मामले) चेन्नई में दर्ज किये गए. अगर दिल्ली की बात करें तो यहां स्थिति चेन्नई से थोड़ी अलग है. साल 2000 में दिल्ली में महिला अपराध से जुड़े 2,122 मामले दर्ज हुए जबकि 2013 में ये आंकड़ा 11,449 था.
अपराध की शिकार सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि युवतियां व छोटी बच्चियां भी हैं. छोटी बच्चियों के साथ दुष्कर्म, युवतियों के साथ छेड़छाड़ व दुष्कर्म और शादीशुदा महिलाओं का दहेज के लिए उत्पीड़न. कहीं से छेड़छाड़ का मामला सामने आता है तो कहीं से ख़बर आती है कि दहेज के लिए किसी महिला को जला के मार दिया गया. इंसान ने तो राक्षसों को भी पीछे छोड़ दिया है. लड़कियों के साथ इस तरह की घटनाओं के ज्यादातर मामलों में जिम्मेदार उनके अपने या उनके करीबी हैं. ये लोग क्रूर नहीं हैवान हैं. भारत में महिला अपराध की फेहरिस्त देखी जाये तो यह बहुत लंबी है. इसमें तेज़ाब फेंकना, जबरदस्ती वैश्यावृति, यौन हिंसा, दहेज हत्या, अपहरण, ऑनर किलिंग, बलात्कार, भ्रूण हत्या, मानसिक उत्पीड़न आदि शामिल है. इन्ही अपराधों पर रोक लगाने के लिए कई कानून भी बने हैं जो इस प्रकार हैं.
चाइल्ड मैरिज एक्ट 1929, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू विडो रीमैरिज एक्ट 1856, इंडियन पीनल कोड 1860, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1861, फॉरेन मैरिज एक्ट 1969, इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1969, क्रिस्चियने मैरिज एक्ट 1872, मैरिड वीमेन प्रॉपर्टी एक्ट 1874, मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन एक्ट 1986, नेशनल कमीशन फॉर वुमन एक्ट 1990, सेक्सुअल हर्रास्मेंट ऑफ़ वुमन एट वर्किंग प्लेस एक्ट 2013 इसके अलावा 7 मई 2015 को लोक सभा ने और 22 दिसम्बर 2015 को राज्य सभा ने जुवेनाइल जस्टिस बिल में भी बदलाव किया है. इसके अन्तर्गत यदि कोई 16 से 18 साल का किशोर जघन्य अपराध में लिप्त पाया जाता है तो उसे भी कठोर सज़ा का प्रावधान है (खास तौर पर निर्भया जैसे केस में किशोर अपराधी के छूट जाने के बाद).
नारी रक्षा के वादे खोखले साबित हो रहे हैं. सरकार द्वारा चलाए गए विभिन्न अभियान भी फ्लॉप साबित हो रहे हैं फिर भले वो ‘एंटी रोमियो स्क्वॉड’ हो या उसकी तर्ज पर आरंभ हुए अन्य अभियान. अब जरूरत है सरकार की तरफ से एक सख्त कदम की. जब तक सख्त कदम नहीं उठाए जाएंगे महिलाएं इसी तरह समस्याएं झेलती रहेंगी. लेकिन अब इसको रोका जाना चाहिए. दोषियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए. इस ओर सबसे बड़ा कदम होगा कि लोगों को शिक्षित किया और बताया जाए कि कुछ व्यवस्थाओं को बदला जाना चाहिए. लोगों में जागरुकता लाई जाए, इस काम को जमीनी स्तर पर किया जाएगा तो बेहतर परिणाम देखने को मिलेगा. जो पार्टियां अपने कार्यकर्ताओं से चुनाव के दौरान जगह-जगह जाकर प्रचार करवाती है और चुनाव के बाद उनके पास लोगों को ट्रॉल करने के अलावा कोई काम नहीं रहता उन्हीं को जागरुकता फैलने के काम पर लगा दिया जाए. इससे दो फायदे होंगे -1. लोग मानसिक तनाव से बचेंगे और 2. ये लोग कुछ अच्छा काम कर लोगों को जागरुक कर पाएंगे. जब लोग शिक्षित होंगे तो इस तरह की घटनाएं खुदबखुद कम होने लगेंगी व धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी.
उपेन्द्र वशिष्ठ के निजी विचार…
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