चर्चित फिल्म पद्मावती को लेकर पिछले कई महीनों से अफवाहें उड़ाई जा रही थीं। उसके प्रदर्शन के लिये अटकलें लगायी जा रही थी कि फिल्म की रिलीज कब होगी। सेंसर बोर्ड की हरी झण्डी के बाद भी गुजरात, हरियाणा, हिमाचल और समेत अन्य राज्यों ने फिल्म के प्रदर्शन पर बैन यह कहते हुए लगा दिया था कि इसके रिलीज होने से प्रदेश में शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका है। सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्र की बंेच में इस मामले की सुनवाई हुई। सीजेआई ने अपने निर्णय में यह कहा कि जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म को रिलीज करने प्रमाणपत्र दे दिया है तो प्रदेश सरकारें उसके प्रदर्शन पर रोक कैसे लगा सकती हैं। सेंसर बोर्ड का प्रमाणपत्र संपूर्ण देश में फिल्म के रिलीज के लिये होता है। आदेश में यह भी कहा कि यदि किसी भी प्रदेश में फिल्म के प्रदर्शन पर शांतिभंग की घटनायें होती हैं तो प्रदेश सरकारें व्यवस्था कायम रखने के लिये सख्त कदम उठायें।
सुप्रीमकोर्ट के इस आदेश से जहां फिल्म निर्देशक और उससे जुड़े लोगों खुशी की लहर छा गयी है। वहीं दूसरी ओर इस फिल्म के प्रदर्शन का विरोध करने वाली करनी सेना जैसे अन्य संगठनों को भारी झटका लगा है। सीजेआई दीपक मिश्र की कार्यप्रणाली से नाराज सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ चार जजों ने प्रेसवार्ता कर सुप्रीमकोर्ट की बदहाली का खुलासा किया था। अभी तक दीपक मिश्र व नाराज जजों के बीच सुलह नहीं हो सकी है।
मीडिया में सीजेआई और अन्य चार जजों के बीच चल रही अनबन को प्रमुखता से प्रसारित व प्रकाशित किया। ऐसे में सीजेआई की भूमिका पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। यह भी आरोप लग रहा है कि दीपक मिश्र केन्द्र के दबाव में अहम् मामले अपनी पसंद के निचली जजों के सामने रखते हैं। ताकि वो फैसले करते वक्त सीजेआई के रुख को वरीयता दे सकें। ऐसे में सीजेआई ने पद्मावती के प्रदर्शन को लेकर प्रदेश सरकारों के विरोध व बैन के खिलाफ फिल्म के प्रदर्शन को हरी झण्डी दिखाने का फैसला लिया। शायद यह इसलिये भी किया गया है कि अवाम में जो उनकी छवि को लेकर कर अफवाहें हैं उससे वो उबर सकें।
विनय गोयल के विचार