आईना आज फिर रिश्वत लेते पकड़ा गया,
दिल में दर्द था फिर भी चेहरा हंसता दिखाई दिया।
हंस कर कुबूल क्या कर ली सजा मैंने,
आपने तो दस्तूर ही बना लिया हर इल्जाम मुझ पर लगाने का।
हाथ मेरे भूल बैठे हैं दस्तकें देने का फन,
बंद मुझ पर जब से उसके दिल का दरवाजा हुआ।
न तेरी अदा समझ में आती है ना आदत ऐ जिंदगी!
तू हर रोज नयी सी हम हर रोज वही उलझे से।
….. दीपिका टंडन