जैसा कि कुछ दिनों के हलचल से लग रहा था, सीपीएम और कांग्रेस त्रिपुरा में मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी. सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने 11 जनवरी को ही कह दिया था कि बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए सीपीएम, कांग्रेस के साथ गठजोड़ के लिए तैयार है. अगरतला में 13 जनवरी को कांग्रेस महासचिव अजय कुमार और सीपीएम के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी के बीच हुई बैठक के बाद गठबंधन का ऐलान कर दिया गया.
त्रिपुरा की राजनीति में नए राजनीतिक समीकरण की शुरुआत
सीपीएम और कांग्रेस गठबंधन से त्रिपुरा की राजनीति में नए समीकरण की शुरुआत हो गई है. नया समीकरण इसलिए भी कहना सही है क्योंकि यहां सीपीएम और कांग्रेस अब तक धुर विरोधी थे. त्रिपुरा में 1967 से विधानसभा चुनाव हो रहा है. बीते 6 दशक के राजनीतिक इतिहास में त्रिपुरा में सीपीएम और कांग्रेस उत्तर और दक्षिण ध्रुव की तरह थे. 2018 तक हमेशा ही त्रिपुरा की सत्ता के लिए इन दोनों दलों में ही भिडंत हो रही थी. लेफ्ट और कांग्रेस एक-दूसरे की धुर विरोधी के तौर पर त्रिपुरा में 53 साल राज कर चुके हैं.
सीपीएम-कांग्रेस के गठबंधन से त्रिपुरा में क्या होगा बदलाव !
सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि धुर विरोधी होते हुए भी सीपीएम और कांग्रेस ने आपस में गठबंधन कर लिया हैं. दोनों ही दलों के नेताओं ने बीते कुछ महीनों में कई बार ये बयान दिया था कि त्रिपुरा में किसी भी तरह से बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से रोकना होगा. जिस तरह से 2018 में त्रिपुरा की राजनीति में बीजेपी हावी हुई, उसको देखते हुए सीपीएम और कांग्रेस दोनों ही मिलकर बीजेपी को मजबूती से चुनौती देना चाहेंगे. तमाम आकलन के बाद ही दोनों दलों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, ताकि बीजेपी को किसी भी तरह से त्रिपुरा की सत्ता से बाहर करने में कामयाबी मिल सके. एक तरह से इसे मजबूत गठबंधन भी कहा जा सकता है. राजनीति में अगर दुसरे के अस्तित्व को खतरे में डालना है,तो धुर विरोधी भी कंधे से कंधा मिला कर चलते हैं और त्रिपुरा में ऐसा ही हुआ है.