बड़ी उम्मीद से हम तुम्हारे दर पर पहुंचे लेकिन बड़े बेआबरु हो कर तुम्हारे घर से निकाले गए. ऐसा ही कुछ हाल दिल्ली के मुखिया केजरीवाल का भी है. एक दौर था जब केजरीवाल आज के विपक्षी नेताओं को पानी पी पी कर कोसते रहे थे. उनका कहना था कि विपक्ष के यह सभी नेता भ्रष्टाचार के अगुआ है. लेकिन आज जब वह खुद भ्रष्टाचार के आरोपो से घिर गए तब उन्हे विपक्ष की याद आ रही है. हाल के दिनो मे केजरीवाल कई विपक्षी दलो के नेताओं से मुलाकत करने वाले है. लेकिन केजरीवाल को पहले ही कांग्रेस झटका दे चुकी है. कर्नाटक मे जो शपथ मंच सजा था उस पर विपक्ष के तमाम बड़े नेता मौजुद थे लेकिन केजरीवाल नही. क्योकी केजरीवाल को कांग्रेस ने आमंत्रित ही नही किया था. तो क्या बिना कांग्रेस केजरीवाल की विपक्षी एकता रंग ला पाएगी. क्या है खबर बताते है आपको……….. उनकी तरफ से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे से मुलाकात की जाएगी. अब ये मुलाकात कहने को एक अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए मानी जा रही है, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह अरविंद केजरीवाल भी 2024 के रण के लिए विपक्ष एकजुट करना चाहते हैं. इससे पहले भी कई विपक्षी नेताओं से केजरीवाल मुलाकात कर चुके हैं, उनकी तरफ से इस साल मार्च में एक बड़ी बैठक करने की भी तैयारी थी. वो हो तो नहीं पाई, लेकिन उनका इरादा स्पष्ट दिख गया. उसी इरादे के तहत अरविंद केजरीवाल 23 मई को सबसे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिलने वाले हैं. उनकी ये मुलाकात कोलकाता में ही होने वाली है, इसके बाद 24 मई को वे महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे से मुलाकात करने वाले हैं. अभी के लिए आप संयोजक का मुख्य एजेंडा तो अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना है, लेकिन इसके साथ-साथ बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की तस्वीर को भी मजबूत करना है.लेकिन एक सवाल जरूर उठता है- क्या अरविंद केजरीवाल इस विपक्षी एकता में कांग्रेस को भी साथ रखते हैं? क्या कांग्रेस इस विपक्षी एकजुटता को आगे से लीड करे, ये बात उन्हें स्वीकार होगी? इसे लेकर अभी तक केजरीवाल ने तो अपनी मंशा पूरी तरह साफ नहीं की है, लेकिन कांग्रेस ने कर्नाटक जीत के बाद सरकार के शपथग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं दिया. जिस मंच को विपक्षी एकता दिखाने का अवसर बताया जा रहा था, वहां आम आदमी पार्टी को आने का मौका ही नहीं मिला. आप को ना बुलाना ही बता रहा है कि कांग्रेस अभी भी विपक्षी एकता में अरविंद केजरीवाल को ज्यादा बड़ा खिलाड़ी नहीं मान रही.
बिल के बहाने विपक्षी दोस्तों का दिल देख रहे हैं केजरीवाल, इस बड़े दांव का मतलब समझिए !
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