केजरीवाल ने विपक्षी एकता का हिस्सा बनने के लिए हामी भर दी है. जो केजरीवाल जब राजनीति मे आए थे तो कांग्रेस और भाजपा को खुब कोसते थे लेकिन आज उन्ही केजरीवाल की राजनीतिक महत्वकांक्षा इतनी हावी हो गयी है की उन्हे सही गलत की बिल्कुल पहचान नही हो रही है और केजरीवाल मे विपक्षी एकता का न्यौता खुशी खुशी कबूल कर लिया है. जिसके बाद भाजपा खेमे मे खुशी की लहर है कैसे बताते है आपको ………… बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद केजरीवाल ने उस महागठबंधन का हिस्सा बनना स्वीकार किया जिसमें कांग्रेस सबसे बड़ा दल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार को हटाकर जनता को महंगाई-बेरोजगारी से राहत दिलाने की बात कहते हुए केजरीवाल ने कहा कि वह नीतीश कुमार की पहल के साथ हैं. महागठबंधन में ‘आप’ की कितनी हिस्सेदारी होगी और अरविंद केजरीवाल की भूमिका क्या होगी? कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी जैसे दलों के साथ जुड़ने से फायदा होगा या नुकसान? इस तरह के तमाम सवाल पूछे जाने लगे हैं. हालांकि, केजरीवाल ने पहले दिन ही मीडिया से कहा कि सभी सवालों के जवाब एक शाम ही नहीं दिए जा सकते हैं. धीरे-धीरे बात आगे बढ़ेगी और सवालों के जवाब सामने आएंगे. महागठबंधन का हिस्सा बनने से 2024 के लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को कितना फायदा होगा, इसका सही जवाब तो काउंटिंग के बाद ही पता चलेगा. लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अभी लोकसभा में शून्य सीट वाली ‘आप’ के पास इस लड़ाई में खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन पाने को बहुत कुछ है. दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार बनाने के बावजूद लोकसभा चुनाव में पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई है. पंजाब में भी पिछले लोकसभा चुनाव में महज 1 सीट मिल पाई थी, जो सरकार बनने के बाद उपचुनाव में गंवा दी. ऐसे में पार्टी रणनीतिकारों को उम्मीद है कि विपक्षी वोटों की गोलबंदी से वह अपने हिस्से आने वाली सीटों पर जीत हासिल कर सकती है.विपक्षी गठबंधन की हर कोशिश को भाजपा यह कहकर विफल बताती है कि ‘प्रधानमंत्री कौन’ के सवाल पर एकता खत्म हो जाएगी. इस बार भी शायद उसे ऐसी ही उम्मीद हो. हालांकि, केजरीवाल के कांग्रेस गठबंधन के साथ जुड़ने से भाजपा को घेराबंदी का एक मौका जरूर मिल गया है. अब तक कांग्रेस ‘आप’ को बीजेपी की ‘बी टीम’ बताती रही है तो भाजपा कहती है कि केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस की ‘बी टीम’ है. ऐसे में भाजपा कांग्रेस और ‘आप’ को एक दूसरे की सहयोगी पार्टी बताना आसान हो जाएगा. भाजपा के एक नेता ने नाम गोपनीय रखने की अपील करते हुए कहा, ‘गठबंधन कब तक कायम रहेगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन जनता ने फिलहाल यह तो देख लिया है कि केजरीवाल को कांग्रेस से गुरेज नहीं. वह अपने फायदे के लिए उस कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार हैं जिसके खिलाफ आंदोलन चलाकर पार्टी बनाई थी. केजरीवाल को समझना होगा की अगर वह इस तरह के अप्रकृतिक गठबंधन करेगे तो उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता खत्म हो जाएगी.
महागठबंधन का हिस्सा बनी AAP तो फायदे से पहले एक नुकसान; क्यों केजरीवाल के कदम से BJP खुश?
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