राष्ट्रपति मुखौटा भर बचे; संसद के उद्घाटन का बहिष्कार कर सकता है विपक्ष, सावरकर जयंती से भी है दिक्कत !

देश की नयी संसद को 28 मई के दिन देश के नाम समर्पित कर दिया जाएगा. लेकिन विपक्ष इसमे भी राजनीति शुरु कर दी है. देश के प्रधानमंत्री 28 मई के दिन देश की नई संसद का उद्घाटन कर देश को सौप देंगे यानि आगामी मानसून सत्र का संचालन देश की नयी संसद मे ही होगा. देश के प्रधानमंत्री ने लाल किले के प्राचीर से देश और खुद को प्रण दिया था कि आजादी के इस अमृत काल मे हमे कोशिश करनी है की देश को गुलामी की यादो से मुक्त कर दिया जाए. लेकिन शायद विपक्ष को गुलामी और अधिनायकवादी सोच से कुछ अधिक ही पसंद है. तभी वह नयी संसद का विरोध कर रहे है. हमारे विपक्ष को यह बात समझ नही आ रहा है की इतिहास कोई भी नही मिटा सकता है. लेकिन हमे वर्तमान मे भी अपने पुरुषार्थ की इबारत लिखनी होगी जिससे आने वाली पिढ़ी अपनी विरासत पर गर्व महसूस कर सके. लेकिन विपक्ष और खास तौर से कांग्रेस इस तरह की दुरदर्शी सोच से इतफाक नही रखते है. तभी तो गांधी परिवार के यूवराज के बाद कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे से लेकर तमाम विपक्षी दल देश के पुरुषार्थ के विरोध मे लगे है क्या है खबर बताते है आपको …….. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सबसे पहले इस पर सवाल उठाया कि आखिर नई संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से क्यों नहीं कराया जा रहा है. राहुल गांधी ने लिखा था, ‘नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति जी को ही करना चाहिए, प्रधानमंत्री को नहीं.’ राहुल के बाद अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी ऐसा ही सवाल उठाया है. यही नहीं चर्चा है कि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इस आयोजन से किनारा भी कर सकते हैं. इससे पहले 2020 में जब संसद भवन का शिलान्यास हुआ था, तब भी कई दलों ने इसका बहिष्कार कर दिया था. तब कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने कहा था कि देश आर्थिक संकट और कोरोना जैसी महामारी के दौर से गुजर रहा है. ऐसे में करोड़ों की पूंजी खर्च करके नया संसद भवन बनवाने की क्या जरूरत है. तब भी पीएम मोदी ही आयोजन के मुख्य अतिथि थे और उन्होंने संसद भवन का शिलान्यास किया था. अब उनके ही कार्यकाल में संसद भवन बनकर तैयार है.  सूत्रों का कहना है कि विपक्ष को संसद भवन के उद्घाटन की तारीख से भी आपत्ति है. संसद का उद्घाटन 28 मई को हो रहा है और इसी दिन वीर सावरकर की जयंती भी होती है. कांग्रेस वीर सावरकर पर निशाना साधती रही है और उन्हें सांप्रदायिक राजनीति से जुड़ी शख्सियत बताती रही है. ऐसे में यह भी उसके लिए एक बहाना हो सकता है. इसके अलावा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से संसद के उद्घाटन की मांग भी उठाई जा रही है. फिलहाल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इस पर चर्चा कर रहे हैं औऱ सामूहिक सहमति बनाकर कार्यक्रम का बहिष्कार भी कर सकते हैं.