जब देश मे राजीव गांधी की सरकार थी तब एक नेता थे वीपी सिंह जो जादुई तरीके से जेब से पर्ची निकालते थे और सरकार के तमाम नेताओं पर आरोप लगाते थे कि इस पर्ची मे सभी भ्रष्टाचारी नेताओं के नाम है जैसे ही हम सरकार मे आएंगे उन पर कार्यवाई करेंगे लेकिन तब भी राजनीतिक महत्कांक्षा हावी थी और आज भी वही हावी है. आज की राजनीति मे भी एक नेता है अरविंद केजरीवाल वो वीपी सिंह के तर्ज पर बड़े ही नाटकीय अंदाज मे एक फाईल निकालते और कहते की इसमे देश के तमाम भ्रष्टाचारीयों के नाम है. अगर आप वर्ष 2012 का कालखंड देखे तो आपको समझ मे आएगा की केजरीवाल साहब के नज़र मे लालू और मुलायम परिवार देश के दो सबसे बड़े भ्रष्टाचारी परिवार थे. लेकिन राजनीति की मलाई का मोह ऐसा की उसी लालू परिवार के उत्तराधिकारी तेजस्वी से बड़ी सहजता से गले मिलते दिखते है. लेकिन इस तरह की राजनीतिक दृश्य से एक स्थिती तो जरुर साफ हो जाती है की भ्रष्टाचार जनता को गुमराह करने का एक चुनावी जुमला है. जो विपक्ष सिर्फ चुनावो मे ही निकालता है. आखिर कैसे किया भाजपा ने केजरीवाल को एकस्पोज बताते है आपको ख़बर मे …….. 2024 लोकसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी ने विपक्षी महागठबंधन में शामिल होने का फैसला कर लिया है. बुधवार को दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से मुलाकात के बाद खुद आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस बात का ऐलान किया. अब भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोगों की एकजुटता करार दिया है. भाजपा ने गुरुवार को केजरीवाल पर तंज कसते हुए कहा कि अन्ना हजारे को गुरु बताने वाले अब लालू यादव के अनुयायी हो गए हैं.भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस, जेडीयू और आप को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा,’एक ऐसा व्यक्ति जिसकी खुद की पार्टी यूनाइटेड नहीं है और उनके साथ एक और ऐसे व्यक्ति जो अपने राज्य में तीसरे नंबर पर आ चुके हैं वो दोनों मिलकर कल राष्ट्रीय स्तर पर एकता की बात कर रहे थे.’ उन्होंने केजरीला को निशाने पर लेते हुए कहा,’भारतीय राजनीति का नटवरलाल या मैं कहूं भारतीय राजनीति में सियासी धर्मांतरण का जीता-जागता उदहारण है…वो अरविंद केजरीवाल हैं. इंडिया अगेंस्ट करप्शन आज जस्टिफिकेशन फॉर करप्शन बन चुका है. अन्ना हजारे को अपना गुरु मानने वाले आज लालू,राहुल और तेजस्वी के अनुयायी बन गए हैं. केजरीवाल जिस लक्ष्य के साथ राजनीति मे आए थे उन्हे उसी लक्ष्य के साथ चलना चाहिए नही तो उनकी राजनीति मे उनकी विश्वसनियता भी ख़त्म हो जाएगी.