माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को पंजाब की जेल में ही रखे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चली कानूनी लड़ाई के लिए पंजाब सरकार ने वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे को अपनी पैरवी के लिए लगाया था. अब उनकी 55 लाख रुपये की फीस का बिल मुख्यमंत्री भगवंत मान की सरकार की गले की हड्डी बन गया है. एक रिपोर्ट में बताया गया कि हाल ही में भगवंत मान के पास पहुंचने से पहले दुष्यंत दवे की कानूनी फीस से संबंधित फाइल कई विभागों के चक्कर लगा चुकी है, मगर किसी ने उसे पास नहीं किया. मान ने खुद गुरुवार को पिछली कांग्रेस सरकार पर रोपड़ जेल में उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी को ‘वीआईपी’ सुविधाएं देने करने का आरोप लगाया. पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा कि उस समय के मंत्रियों से कानूनी फीस के 55 लाख रुपये की वसूली के लिए कानूनी राय मांगी गई है. खबर के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के कार्यकाल में कानूनी फीस की फाइल तत्कालीन एडवोकेट जनरल डीएस पटवालिया के ऑफिस से सचिव जेल डीके तिवारी के पास चली गई थी. इसे तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और जेल मंत्री सुखजिंदर रंधावा को भी भेजा गया था. फिर इसे तत्कालीन मुख्य सचिव अनिरुद्ध तिवारी के कार्यालय के साथ-साथ केएपी सिन्हा के तहत वित्त विभाग को भी भेजा गया था. हालांकि किसी ने भी फाइल को मंजूरी देने का फैसला नहीं लिया. आखिरकार पिछले साल 31 जनवरी को इस फाइल को अधीक्षक जेल को भेज दिया गया. 8 जनवरी को आदर्श आचार संहिता लागू होने के हफ्तों बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. बहरहाल सुप्रीम कोर्ट में पंजाब सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए दवे को शामिल करने की मंजूरी पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 1 जनवरी, 2021 को दी थी. जबकि उनका बिल एक साल बाद जनवरी 2022 में मंजूरी के लिए आया था. तब तक चरणजीत सिंह चन्नी राज्य के मुख्यमंत्री बन चुके थे. भगवंत मान ने अब साफ कहा है कि वह करदाताओं के पैसे से मुख्तार अंसारी के मामले के कानूनी बिल का भुगतान नहीं करेंगे.
मुख्तार पर क्यों मचा सियासी बवाल इसकी टोपी उसके सर का क्या है नया खेल पंजाब मे !
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