2024 के रण से पहले भाजपा को मिला मजबूत भागीदार, किसके साथ से भाजपा मे है जोश की लहर …. !

2024 आम लोकसभा चुनाव के रण मे जाने से पहले भाजपा को दक्षिण मे एक मजबूत जोड़ी दार मिल सकता है. जिसके भरोसे भाजपा कर्नाटक के बाहर भी अपना वर्चस्व कायम कर सकती है. भाजपा के जोड़ी दार चंद्रबाबू नायडू जो की 2019 चुनाव से पहले अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओ से ग्रसित हो कर राजग गठबंधन से अलग हो गए थे वो फिर से भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए लालायित नजर आ रहे है. चंद्रबाबू नायडू ने अभी हाल ही मे प्रधानमंत्री की तारीफ मे जम कर कसीदे पढे और फिर से भाजपा की और पींगे बढ़ाने लगे है. जिसके बाद दक्षिण मे सियासी सुगबुगाहट शुरु हो गयी है की क्या वापस से नायडू भाजपा गठबंधन का दामन थाम सकते है. क्या कुछ कहा दक्षिण के इस क्षत्रप नायडू ने बताते है आपको …………. तेलुगु देशम पार्टी सुप्रीमो और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का खुलकर समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी को समर्थन देना देश और विकास के हित में है. हालांकि, नायडू ने एनडीए के पाले में लौटने की संभावना पर सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी. विश्लेषक इसे एक एक दिलचस्प राजनीतिक घटनाक्रम मान रहे हैं. नायडू के अनुसार, तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) का फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल होना तो वक्त ही तय करेगा. टीवी डिबेट में, जब एंकर ने नायडू से भाजपा के साथ संभावित गठबंधन के बारे में पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, “यह तो समय की बात है. समय ही बताएगा. राजनीति और विकास को दो अलग-अलग चीजें बताते हुए चंद्रबाबू ने कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं और देश के विकास के लिए काम करने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि विकास और राजनीति को अलग-अलग चश्मे से देखा जाना चाहिए. नायडू ने 2019 के चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए से नाता तोड़ लिया था और नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक अभियान भी चलाया था. उन्होंने मोदी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने के लिए कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को एकजुट करने के जुझारू प्रयास भी किए थे. हालांकि 2019 के चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करने के महीनों बाद, नायडू ने मोदी के खिलाफ जाने के अपने कदम पर खेद व्यक्त किया. उन्होंने माना कि उनके इसी कदम से उन्हें आंध्र प्रदेश की सत्ता गंवानी पड़ी.