Karnataka Chunav : भाजपा के सामने कई परेशानिया कैसे होगी कर्नाटक में नैय्या पार ? या बीच मझधार में फसेगी केसरिया पार्टी ....

 

इस साल के मध्य में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होना है. वर्तमान में यहां भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है. सूबे में चुनावी माहौल अभी से बनने लगा हैं.

कर्नाटका में अभी से राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. हाल ही में राहुल गांधी ने यहां 20 दिन तक भारत जोड़ो यात्रा की. राहुल की इस यात्रा को काफी समर्थन भी मिला. यही कारण है कि अब भाजपा ने नए सिरे से यहां गणित बैठाना शुरू कर दिया है. शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह भी यहां पहुंचे.

भाजपा को पार्टी के अंदर की कई चुनौतियों से जुझना पड़ रहा है. मुख्यमंत्री बदलने के बाद से ही पार्टी में आंतरिक कलह जारी है. आपको बताते हैं यहां भाजपा के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां हैं? कैसे भाजपा इसका सामना करने की कोशिश कर रही है?

कर्नाटक का राजनीतिक समीकरण जान लेते हैं ?

कर्नाटक में जब 2018 के विधानसभा चुनाव हुए थे तो भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. लेकिन पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया था, लेकिन 104 सीटों पर जीत जरूर मिली थी. सरकार बनाने के लिए कर्नाटक में बहुमत का आंकड़ा 113 है.

राज्य में कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन करके सरकार बनाई. हालांकि, बाद में दोनों ही पार्टियों के कई विधायकों ने पाला बदल लिया. इन विधायकों की मदद से भाजपा ने सरकार बनाई. बीएस येदियुरप्पा राज्य  के मुख्यमंत्री बने. लेकिन 2021 में भाजपा नेतृत्व ने उनकी जगह बसवराज बोम्मई को सीएम बना दिया.

बीएल संतोष, बीएस येदियुरप्पा और बोम्मई के अपने गुट !

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष भी कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं. इस चुनाव में वह भी काफी एक्टिव हैं. हालांकि, बताया जाता है कि बीएल संतोष, बीएस येदियुरप्पा और बोम्मई के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. भाजपा में ये तीन फ्रंट सबके सामने हैं. इसके अलावा बोम्मई कैबिनेट के भी कुछ सीनियर मंत्री ऐसे हैं, जो मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं.  इनका एक अलग मोर्चा बन चुका है.

 

भाजपा के सामने चार प्रमुख चुनौतियां

मौजूदा समय में कर्नाटक भाजपा, सरकार और पार्टी दोनों ही कई चुनौतियों से जूझ रही है. हालांकि, इनमें चार जो सबसे बड़ी चुनौती है वो कार्यकर्ता, संगठन के बड़े नेता और संगठन-सरकार में तालमेल की कमी है. क्यूंकि बताया जा रहा हैं कि कई कार्यकर्ता सरकार से नाखुश हैं.

पिछले साल कर्नाटक के अंदर दो हिंदूवादी युवा नेताओं की हत्या हो गई. इन मामलों में सरकार के रवैए पर  सवाल हुए. इससे संघ से जुड़े दूसरे संगठनों के कार्यकर्ता और युवा नेता नाराज चल रहे हैं.

इसके आलावा प्रदेश संगठन में कई गुटों का बनना भी हैं, बोम्मई के अलावा बीएस येदियुरप्पा, बीएल संतोष का भी अलग गुट प्रदेश में काम कर रहा है. कुछ कैबिनेट मंत्री भी हैं, जो खुद को सीएम पद का मजबूत दावेदार मानते हैं.संगठन में कई गुट बनने से भी पार्टी को नुकसान होता दिख रहा है.

संगठन और सरकार में तालमेल की भी हैं कमी ये भी भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती है. आमतौर पर भाजपा को सरकार और संगठन के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए जाना जाता है, लेकिन कर्नाटक में इसके उलट होता है. यहां सरकार और संगठन के बीच कोई तालमेल नहीं है.

नेतृत्व की कमी येदियुरप्पा के बाद अब पार्टी में कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसके नाम पर पूरी पार्टी एकजुट हो सके. कुल मिलाकर प्रदेश स्तर पर पार्टी में नेतृत्व की बड़ी कमी है.

राहुल गांधी की यात्रा से कर्नाटक भाजपा हैं परेशान

कर्नाटक में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बीस दिनों तक रही. इस यात्रा के बाद कर्नाटक कांग्रेस ने नारा दिया कि ‘अबकी बार, कांग्रेस 150 पार’. राहुल ने कर्नाटक के अंदर काफी रणनीति तैयार की. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कर्नाटक में यात्रा के दौरान सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी पहुंची.

राहुल की यात्रा का रूट और सियासी समीकरण समझें तो ये यात्रा दक्षिण कर्नाटक से होकर गुजरी. यात्रा सात जिलों की सात संसदीय सीटों चामराजनगर, मैसुरू, मांड्या, तुमकुर, चित्रदुर्ग, बेल्लारी और रायचूर से होकर गुजरी. इन सात संसदीय इलाकों में करीब 21 विधानसभा सीटें आती हैं.

भाजपा की अगली रणनीति क्या होगी ?

कर्नाटक की स्थिति के बारे में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को जानकारी है. यहां पहले ये कयास लगाए जा रहे थे कि येदियुरप्पा को मनाने के लिए उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का राज्यपाल बनाया जा सकता है. हालांकि, अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है.