द्रौपदी मुर्मू से शुरू होगा जनजातीय समूह का उदय?

आज जिक्र नव निर्वाचित राष्ट्रपति और जनजातीय समुदाय के आशाओ की ……………… आज देश एक बार फिर लोकतंत्र के ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी बना मौका था देश के 15वे राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह. देश की संसद का ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष फिर से लोकतान्त्रिक परंपरा का गवाह बनने के लिए तैयार था. आज देश का लोकतंत्र मिश्रित अनुभवों से गुजर रहा था एक तरफ देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था नव-निर्वाचित राष्ट्रपति के स्वागत के लिए तैयार और खुश था. तो वही दूसरी और निर्वतमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की विदाई से दुखी भी. लेकिन लोकतंत्र और सामाजिक जीवन की यही खूबसूरती हैं की वो बदलावों से विचलित नही होते और कर्तव्य पथ पर निरंतर अग्रसित रहते हैं. लेकिन इस बार राष्ट्रपति शपथ देश के इस महत्वपूर्ण कालखंड में लोकतंत्र की एक सुखद तस्वीर के रूप में दर्ज हो गया. आज देश के अनुसूचित जाति से आने वाले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद देश की एक अनुसूचित जनजाति से आने वाली महिला द्रौपदी मुर्मू को देश के सर्वोच्च पद और देश की संवैधानिक उत्कृष्टा बनाये रखने की जिम्मेवारी सौप रहे थे. उस क्षण ऐसा लगा की असल मायनों में बाबा साहेब,गाँधी और देश के तमाम आजादी के मतवालों की सोच आज साकार हुई, कि देश तभी आगे बढेगा जब देश के सर्वोच्च पदों पर देश के सबसे निचले तबको का प्रतिनिधित्व बढेगा. आज देश का लोकतंत्र दीन दयाल उपाध्याय के अन्तोदय की सोच का भी साक्षी बना जिसमे देश के अंतिम पायदान पर उपस्थित व्यक्ति तक संसाधन और लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहुच हो. राष्ट्रपति हमारे देश की प्रभुत्ता एकता और मजबूत लोकतान्त्रिक व्यवस्था का प्रतिक, राष्ट्रपति मतलब सरकार का कार्यपालक अध्यक्ष, राष्ट्रपति मतलब देश की संसद राष्ट्रपति मतलब देश का अभिवावक न जाने और कितने ही लोकतांत्रिक व्यवस्थाओ का प्रतिबिम्ब हैं राष्ट्रपति. हमेशा राष्ट्रपति अलग-अलग मौको पर देश को एक बेहतर लोकतंत्र बने रहने के लिए पथ-निर्देशित भी करते रहते हैं. आज जब देश की पहली नव-निर्वाचित वनवासी महिला द्रौपदी मुर्मू देश की 15वी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले रही थी और महामहिम द्रौपदी मुर्मू का ये कहना की मेरा चुनाव इस बात को साबित करता हैं कि गरीबी में सपने देखे जा सकते हैं और उसको पूरा भी किया जा सकता हैं.
देश की नव-निर्वाचित महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सदन के केंद्रीय कक्ष में अपने भाषण की शुरुआत की तो उन्होंने केंद्रीय कक्ष में बैठे सभी गणमान्य का अभिवादन करते हुए जोहार शब्द का प्रयोग किया.

जोहार शब्द से तात्पर्य है तमाम “सजीव और निर्जीव प्रकृति के अंगों की जय हैं”. “जोहार” का अर्थ “सबका कल्याण करने वाली प्रकृति की जय” हैं. इस तरह “जोहार” का अर्थ हुआ – “सबका कल्याण करने वाली प्रकृति की जय” अर्थात “प्रकृति के प्रति संपूर्ण समर्पण का भाव ही जोहार है“. आपने ये जोहार शब्द का अत्यधिक प्रयोग आदिवासी समुदाय के बीच ही सुना होगा कारण ये भी हैं की आदिवासी समुदाय का प्रकृति की तरफ एक ख़ास श्रधा समर्पण और कृतज्ञता का भाव होता हैं. क्यूंकि वनवासी समुदाय कि ये मान्यता हमेशा रहती हैं की हम जिन भी संसधानो का प्रयोग कर रहे हैं, वो प्रकृति की देन हैं. हम सब की उत्त्पति और हमारा अंत प्रकृति में ही होगा. लेकिन देश की पहली वनवासी महिला महामहिम के द्वारा इस शब्द का प्रयोग ये भी दर्शाता हैं कि जनजातीय समुदाय का व्यक्ति किसी भी पद या कितनी ही प्रतिष्ठा प्राप्त कर ले वे हमेशा अपनी जड़ो से जुड़ा हुआ हैं और रहेगा और यही खासियत हैं जनजातीय समुदाय की. आज जब देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वर्ण पृष्ठ जुड़ा हैं, जिसके केंद्र में आदिवासी समुदाय हैं, तो थोडा सा रेखांकित आज उस आदिवासी समुदाय को भी कर लेते हैं कि भारत में उनकी क्या स्थिति और सहभागिता हैं इस पर भी कर लेते हैं…………… संविधान के अनुच्छेद 366(25) के मुताबिक, अनुसुचित जनजाति का मतलब, “ऐसी जनजातिय समुदाय से हैं, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 में मान्यता दी गयी हैं. अनुसूचित जनजाति को 30 राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशो में अधिसूचित क्या गया हैं. इस अधिसूचना के मुताबिक, जनजातियों की कुल संख्या 705 हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में जनजातीय समुदाय की आबादी 10.43 करोड़ हैं. जो देश की कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत हैं. अनुसूचित जनजाति समुदाय की कुल आबादी का 88.97 प्रतिशत हिस्सा गाँव और 10.03 प्रतिशत हिस्सा शहरों में रहता हैं. आप इसी आकड़े से अंदाजा लगाइए कि ये समाज अपनी जड़ो से आज भी कितना अधिक जुड़ा हुआ हैं. भारत के जनजातीय समुदायों की जड़े प्रकृति, स्थानीय रोजगार, परम्परागत बोलचाल और लोक संस्कृति के साथ बहुत गहराई तक जुड़ी हैं और ये लोग अक्सर अपने समुदाय में ही सिमित रहते हैं. औपनिवेशक जातिगत परिवेश में सीधे साधे देहाती ढंग से रहते हुए ये जनजातीय समुदाय हमारे देश की समृद्ध धरोहर को जीवित रखे हुए हैं. भारत के स्वाधीनता संग्राम में अपने ऐतिहासिक योगदान से इन्होने देश के इतिहास में उल्लेखनीय स्थान अर्जित किया हैं. छत्तीसगढ़ी भाषा के लोकगीत ददरिया की दो पंक्तियो की इस रागिनी में स्वराज की भावना की सशक्त अभिव्यक्ति की गयी हैं ———–

“दीया माँगे बाती, बाती माँगे तेल
सुराज लेबो अंगरेज, कतका देबे जेल ?

मतलब दीपक को बत्ती चाहिए और बत्ती को तेल की जरुरत होती हैं . अरे अंग्रेजों ! हम स्वराज लेकर रहेंगे और हमें इसकी परवाह नहीं कि तुम हमें कितनी बार जेल भेजेगो . उनका संघर्ष और सादगी भरा जीवन ओर रहन सहन देश के प्रति समर्पण, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण जैसे मुद्दे पर देश को सिख दे रहा हैं. सरकार भी जनजातीय समूह के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयासरत हैं. जिसके तहत सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजातियो का शोषण उन पर होते अत्याचार पर लगाम लगाने के लिए तथा उन्हें बसाकर राहत सहायता उपलब्ध कराने का अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति
(अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 पारित किया. सरकार ने अनुसूचित जनजाति को अधिक संरक्षण देने के उद्देश्य से अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 के अधिक प्रभावी बनाया. जनजातीय समाज को मानसिक प्रोत्साहन देने के लिए ही बिरसा मुंडा के जन्मदिवस 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव के दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी हैं. सरकार ने इसी सोच के तहत पहली बार एक संथाल आदिवासी समुदाय से आने वाली महिला को देश के सर्वोच्च पद के लिए समर्थन दिया और आज देश की जनजातीय समुदाय से आने वाली महिला देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसिन हैं. असल मायने में अगर नए भारत में कोई समुदाय हैं जो भारतीय संस्कृति को व्यापक पहचान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं, वो हैं आदिवासी समुदाय. इस देश के सामाजिक,समावेशी, दूरदर्शी और विविधिता से भरे लोकतंत्र की ये खूबसूरती हैं की इस देश का कोई भी व्यक्ति अगर वो संघर्ष और प्रयत्नशील हैं इस देश की सेवा और सार्वजानिक जीवन में तो इसे इस देश की सर्वोच्च सेवा का मौका जरुर दिया जाता हैं. इस देश का संविधान और संवैधानिक परम्परा महामहिम मैडम मुर्मू से इस बात की उम्मीद जरुर कर रहा होगा की वह अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति के अनुभवों से सिखती और समझती हुई राष्ट्रपति पद और लोकतंत्र की एक नयी परिभाषा जरुर इस देश की लोकतान्त्रिक यात्रा में प्रस्थापित करेंगी.

written by: RAKESH MOHAN SINGH
edited by : md shahzeb khan