आज हम एक ऐसे विषय पर आपका ध्यान आकृष्ट करेंगे जिस पर नाम मात्र ही चर्चा हो रही हैं. लेकिन इस बात पर विचारक न होना आने वाले समय में देश के संविधान की प्रस्तावना की पहली लाइन “हम भारत के लोग” जो ये इंगित करता हैं की भारत के लोकतंत्र में सभी धर्म समुदाय और संस्कृति का समावेश हैं उसको बुरी तरह खंडित कर देगा. अगर आप थोडा सा पीछे जाए बीते दो महीने में तो देश में क्या-क्या हुआ ज्ञानवापी का मसला जोर शोर से उठा, हर मस्जिद में मदिर की खोज शरू हुई, इस कवायद के पीछे हर समुदाय का अपना सच था. इस दौर में धर्म के नाम पर राजनीति चरम पर थी, ओर नेता जी के भाषण में राजनीतिक गरिमा धरातल पर पहुच चुकी थी. उसके बाद एक राष्ट्रीय पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता ने एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के डेली डिबेट शो में जिन डिबेट का परिणाम आज तक उस राष्ट्रीय चैनल के संपादक स्वयं भी नहीं निकाल पाये होंगे वहा पर एक धर्म विशेष के आस्था को कथित रूप से ठेस पहुचाने के मामले ने देश को लगभग दंगे जैसी परिस्थिति में झोक दिया और अपना रोष व्यक्त करते समय एक ख़ास धर्म समुदाय के लोग भूल गए की लोकतान्त्रिक आन्दोलन और हिंसक प्रदर्शन में क्या फर्क होता हैं ? इस कारण देश के कई राज्यों में आगजनी हुई कही पथराव हुआ तो कही नारेबाजी हुई उसके बाद कही सरकार का बुलडोजर चल गया! फिर राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा हुई और सत्ता और विपक्ष में देश के गार्डियन जैसे पद पर अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए शह मात का खेल शुरू कर दिया. फिर अग्निपथ योजना आई जिसके बाद देश की फौज में जाने की इक्छा रखने वाले युवा जो अपने देश के लिए राष्ट्रभक्ति और देशसेवा की भावना रखते हैं. वो इस योजना को लेकर नाराज ही नहीं हुए उग्र हो गए और इन राष्ट्रवादी और देशभक्ति की भावना रखने वाले युवाओ ने देश की राष्ट्रीय संपत्ति को आग के हवाले कर दिया और कई रेलवे स्टेशन पर जैम कर लूटपाट की इन कथित देशसेवा की सोच रखने वाले युवाओं ने. उसके बाद देश में राज्यसभा चुनाव और उपचुनाव का दौर आया जिसमें फिर कलयुगी राजनीति ने दानव बन कर शह मात का खेल रचा जिसमे बलि चढ़ी जनता के जनादेश की जनता ने जिसको जहा भेजा उसके विपरीत उसने अपना मत दिया. इसके बाद तीन दिन पहले उपचुनाव की के परिणाम की बारी आई जिसमे एक राष्ट्रीय पार्टी ने दूसरी राज्य स्तरीय पार्टी के अति-आत्मविश्वास का फायदा उठा कर उनके किले में सेंध मारी कर दी और उनका किला नेस्तनाबूत कर दिया. लेकिन अब आप जरा ठहरिये अंतिम दो घटना पर गौर कीजिये फिर इस स्टोरी के आगे के सफ़र पर हम आपको ले चलेंगे…….आपको पता है अभी हाल ही में संपन्न राज्यसभा चुनाव के बाद एक राष्ट्रीय पार्टी से मुस्लिम समाज का प्रतिनधित्व राज्यसभा में उनकी तरफ से पूरी तरह खत्म हो चूका हैं. सोचिये विश्व की सबसे बड़ी पार्टी में एक ख़ास समुदाय का प्रतिनिधित्व खत्म होना देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के मूल में छुपी समावेशी सोच और सभी धर्म समुदाय और वर्ग के प्रतिनिधित्व वाले सपने को तोड़ता हैं या नहीं? क्यूंकि घर के छोटे तो घर के बड़ो से ही सीखते हैं! उसके बाद जो उपचुनाव के परिणाम हैं वहा भी अब हिंदुत्व की जय हो गयी……ऐसा परिणाम आने के बाद कई लोग बोल्र रहे थे. हालाँकि इन दोनों ही सीट पर मुस्लिम समुदाय वोटर के रूप में बहुत अधिक प्रभावशील हैं, लेकिन इन दोनों ही संसदीय क्षेत्रो में से रामपुर सीट का हार जाना एक समुदाय के लिए खतरे का प्रतिक हैं कि क्या संसद में धीरे धीरे उनका प्रतिनिधित्व खत्म तो नहीं हो रहा हैं. हालाँकि इसके लिए किसी भी तरह का फतवा जाहिर नहीं होता की किस तरह संसद में अपने रहनुमा अधिक से अधिक भेजे जाए जो उनकी भलाई के सवाल जवाब सदन के अन्दर लोकतान्त्रिक तरीके से सरकार से तलब कर सके. लेकिन अपने समाज को जागरूक और उनके सकरात्मक हितो कि रक्षा के लिए कोई आन्दोलन देखने को मिलता नहीं, क्यूंकि उनके कथित पालनहार भी शायद यही चाहते हैं की इनको धर्म के मसलो पर उलझाए रखो और अपनी राजनीति के नाम पर देश को आग में झुलसाते रहो. क्यूंकि अगर देश का मुस्लिम समुदाय सजग हो गया तो वो सवाल करेगा तमाम जाहिर फतवों पर. अब ऐसा हुआ तो कई शेरवानी और टोपी पहने राजनेताओ और मौलानाओ की दुकान बंद हो जायेगी. क्या मुस्लिम समुदाय के लोगो को अपने कथित रहनुमा राजनेता और मौलानाओ से पूछना नहीं चाहिए की आखिर क्यों नहीं हमारी आवाज़ देश की सरकार तक पहुच रही या आप सही से पहुचा नहीं रहे हैं…..अपने राजनीतिक फायदा में विवश हो कर. आखिर मुस्लिम युवा इस बात क्यों नहीं सोच पा रहा की जो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी हैं, जहा सबका स्वागत और प्रतिनिधित्व हैं. वो उसका प्रबल हिस्सेदार क्यों नहीं बन पा रहा हैं ?क्यों नहीं उस पार्टी के जरिये वो कोई सर्वोच्च पद अख्तियार कर पा रहा हैं ? आखिर आज ऐसी क्या नौबत आ गयी की कई उनकी चहेती राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय पार्टी भी अब उनसे नज़रे चुराने लगी हैं. आखिर किन कारणों की वजह से देश की राजनीति की परिपाटी ऐसी बना दी गयी की, वो एक विशेष समुदाय वाला चोर और सामने वाला ही हमेशा कोतवाल की परिस्थिति में रहेगा? किसकी वजह से मुसलमान आज ऐसी परिस्थिति में पहुच गया……. लेकिन उनके समुदाय के बीच ही इस प्रशन पर बात करने वाला कोई नहीं हैं. क्यूंकि धर्म पर की जा रही राजनीति को शिक्षा की ठंडक से बुझाया जा सकता हैं. इसलिए इस समुदाय के राजनेता और मौलाना धर्म की इस आग वाली राजनीतिक मशाला को अपने धर्म के बच्चो को दिये गए गलत धार्मिक ज्ञान के रोष से जलाये रखना चाहते हैं. तभी तो इस समुदाय का प्रतिनिधित्व देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में खत्म हो रहा हैं लेकिन इस समुदाय में सिर्फ धर्म के शोर हैं, प्रतिनिधित्व बढ़ाने की चिंता नहीं! दर्शको हमारा देश लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाला देश हैं. लोकतंत्र का असल मतलब हैं कि सत्ता में सबकी सहभागिता बिना किसी का धर्म समुदाय और वर्ग देखे हुए, लेकिन एक धर्म विशेष का प्रतिनिधित्व इस देश से लगातार खत्म होने की और बढ़ रहा हैं या यू कह लीजिये की अपने अंतिम दौर के मुहाने पर खड़ा हैं. लेकिन लोकतंत्र में अपनी सहभागिता को कैसे मजबूत किया जाए ऐसी सोच की आवाज न समुदाय विशेष के अन्दर से उठ रही हैं न बाहर से सिर्फ इफ्तार कर लेना या उसमे पहुच कर फोटो खिचवा लेने मात्र से ही इस समुदाय का कल्याण नहीं होगा. आंबेडकर ने हमेशा राजनीतिक प्रतिनिधित्व की लड़ाई लड़ी. उनका मानना था की आपको मजबूत समाज बनाना हैं तो आपका राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी मजबूत होना चाहिए. इसके इत्तर अभी जो लोग दम भरते हैं इनके प्रतिनिधित्व की उनकी कार्य करने के तरीके और सोच को देख कर ऐसा लगता तो नहीं हैं की वो इस समुदाय के हित को लेकर बहुत अधिक सजग हैं जब तक इस समुदाय से जुड़ा कोई धर्म का मुद्दा राष्ट्रीय पटल पर न गरमा जाए. चलिए अब आपको बताते है की आखिर मुस्लिम समुदाय के वर्तमान में कितने सांसद और विधायक हैं देश के संसद और राज्यों की विधानसभा में इस समुदाय के कितने सांसद और विधायक शेष रह गए हैं:
देश के संसद और विधानसभा में कुल मुस्लिम प्रतिनिधित्व
1)देश में विधायको की कुल संख्या 4033, इसमें कुल मुस्लिम विधायक 1000 के लगभग हैं.
2)देश में कुल सांसदों की संख्या 776(Lok Sabha + Rajya Sabha), इसमें कुल मुस्लिम सांसद लगभग 27 हैं.कुल मुस्लिम प्रतिनिधित्व 2% प्रतिशत घटा हैं. 10% से 8% प्रतिशत हो चूका हैं मुस्लिम प्रतिनिधित्व
इस समुदाय का देर से हो रहे विकास के पीछे एक कारण ये भी हैं की सदन में सही प्रतिनिधित्व न होना. तभी तो इस समुदाय के लिए कौन सी विकास परियोजना लायी जा रही हैं, कोई पूछने वाला नहीं हैं न ही इस पर किसी तरह की व्यापक चर्चा होती हैं. छोड़ दिया गया हैं शायद इस समाज को उन संकुचित सोच के मौलानाओ के हाथ में जो उन्हें विकास के सवाल पूछने वाला नहीं बल्कि धर्म का डर दिखा कर उनके भीतर उन्मादी सोच का बीज रोपित कर रहे हैं, जिस पर वह अपनी उन्मादी धर्म की राजनीति वाली खेती कर सके और इन नौजवानो से अपने हितानुसार पत्थर चलवा सके, लगभग हर पवित्र जुमें के दिन ! अगर ऐसा नहीं होता तो शायद हर मौलाना और इस धर्म के कथित रक्षक और धार्मिक समूह ये आवाज उठाता दिखता की आखिर क्यों नहीं अब तक सच्चर समिति की सभी सिफारिशे सही से लागु हो पायी. अगर मौलाना अपने यहाँ के युवाओ को धार्मिक कुंठा से ग्रसित युवा नहीं बल्कि एक तर्कशील समाज के युवा शक्ति के रूप में गठित करते जो उनकी नुमाइंदगी करने वालो से ये सवाल पूछते आखिर आपने सदन में हमारे समाज के विकास से जुड़े कितने प्रश्न पूछे? इस पंचवर्षीय योजना में हमारे समाज के विकास के लिए आपने क्या सुझाव दिए हैं? सरकारी नौकरी और शासन में हमारा प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए आपकी सोच क्या हैं ? और चलिए कुछ नहीं तो यही पूछ लीजिये की सच्चर समिति की रिपोर्ट का क्या हुआ? क्यूंकि समिति की रिपोर्ट आने के बाद इस समाज ने दोनों ही तरह की सरकार देख ली कथित तौर पर इनकी हितेषी सरकार और कथित तौर पर इनका अहित चाहने वाली सरकार फिर भी स्थिति में कोई ख़ास फर्क नहीं हैं. शायद प्रतिनिधित्व में भी चाहे वो प्रतिनिधित्व विधायिका में हो या कार्यपालिका में. चलिए एक नज़र सच्चर समिति की मुख्य सिफारिश पर डाल लेते हैं. जो मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए बनायीं गयी थी और आखिर उस समिति की रिपोर्ट में सिफारिश थी क्या ?
सच्चर समिति की मुख्य सिफारिश
• शिक्षा सुविधा- 14 वर्ष तक के बच्चोंत को मुफ्त और उच्च. गुणवत्ताथ वाली शिक्षा उपलब्धि कराना
• रोजगार: रोजगार में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ाना
• महिलाओं के लिए सूक्ष्मक वित्त को प्रोत्साोहित करना
• वक्फा- वक्फ संपत्तिियों आदि का बेहतर इस्ते माल.
• कौशल विकास- कौशल विकास के लिए आईटीआई और पॉलिटेक्निमक संस्थान खोलना
• सकारात्मक कार्यों के लिए उपाय- इक्वएल अपॉर्च्युनिटी कमीशन
अब खुद ही सोचिये की सच्चर समिति की अनुशंशा में कितना काम हुआ हैं इसको लेकर इन शेरवानी पसंद और टोपी पहने मौलानाओ ने कहा हैं अपने धर्म के युवाओ को सत्याग्रह करो की आपके लिए जो विकास कार्य की अनुशंशा की जा चुकी हैं उसकी गति इतनी धीमी क्यों हैं. क्यों नहीं मस्जिदों से होने वाले एलान या इनके स्वंभू रक्षक के भाषणों में इस बात पर चर्चा होती की देश के विकास में किस तरह से और अधिक सहभागी बने. क्यों नहीं इस धर्म विशेष समुदाय के लोग अपने विकास के जुड़े प्रशन को लेकर अधिक सजग होते हैं अल्बत्ता इस बात को लेकर की किस ने हमारे धार्मिक भावनाओ को अहित किया, धर्म की हिंसक लड़ाई से सिर्फ समाज के भीतर उन्माद उत्त्पन्न होता हैं, ओर जितना जल्दी इनके शेरवानी पहने नेता और मौलाना समझ ले उतना देश और इनके समुदाय विशेष के लिए बेहतर होगा.
written by: Santosh Prasad Sah
edited by : md shahzeb khan