मल्लिकार्जुन खड़गे 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में हैं, लेकिन इसमें कई चुनौतियां हैं. हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस इस तरह की चुनौती से घिरी है. 20 साल पहले भी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इससे दो चार हो चुकी हैं, लेकिन उन्होंने इस नामुमकिन से दिखने वाले काम को मुमकिन बनाया था और जन्म हुआ था यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानी UPA का.
इतिहास से समझें
तब की बात करें तो, सोनिया के लिए भी विपक्षी दलों को एक साथ लाना आसान नहीं था. अपने पति और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्या के जिम्मेदारों को सजा देने के मामले में गंभीर नहीं होने के आरोप वह डीएमके पर लगाती रहीं.
लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि उस दौरान भारतीय जनता पार्टी को हराना ज्यादा बड़ा लक्ष्य है, तो उन्होंने एम करुणानिधि से संपर्क साधा. इतना ही नहीं सोनिया के राम विलास पासवान के घर पहुंचने पर भी सियासी चर्चाएं शुरू हो गई थीं. इसी तरह उन्होंने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी समेत कई दिग्गजों तक अपनी पहुंच बढ़ाई और 2013 तक देश पर शासन किया.
खड़गे के सामने चुनौतियां
अब खड़गे के सामने भी कई चुनौतियां हैं और समय भी बदल गया है. कई भाजपा विरोधी गैर कांग्रेसी दल हैं, जो कांग्रेस को अपना लीडर चुनने के लिए तैयार नहीं हैं. इनमें टीएमसी, आम आदमी पार्टी और भारत राष्ट्र समिति का नाम शामिल है. दिग्गज नेता जयराम रमेश भी कह चुके हैं कि बगैर कांग्रेस के नेतृत्व के विपक्षी मोर्चा सफल नहीं होगा.
खड़गे के सुर अलग
हालांकि, खड़गे अलग सुर में हैं. उन्होंने 2024 जीतने की स्थिति में कांग्रेस के लिए पीएम पद के फैसले को भी विचाराधीन बता दिया है. उन्होंने कहा था, ‘हम पीएम उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं कर रहे हैं. हम नहीं कर रहे कि कौन नेतृत्व करेगा. हम साथ लड़ना चाहते हैं.’
उन्होंने यह भी कहा कि 2004 के UPA की तरह गठबंधन बनाना होगा. इस गठबंधन में टीएमसी शामिल था. खास बात है कि राहुल गांधी भी टीएमसी पर भाजपा की मदद के आरोप लगा चुके हैं. कहा जा रहा है कि खड़गे दोस्त बनाना जानते हैं और उन्हें यह भी पता है कि कांग्रेस तब ही नेतृत्व कर सकती है, जब उसके पास आंकड़े हों.