Loksabha Election 2024 : विपक्षी एकता के लिए यूपी-बिहार की राह आसान नही, कैसे गठबंधन का नाम ही पेश करेगा चुनौती ……………..

लोकसभा चुनाव 2024 अगले साल ही हैं सभी दल सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाने लगे हैं. देश के दो प्रमूख राजनीतिक दल अपना कुनबा बढ़ाने में लगे हुए हैं. सभी दलो को चिंता है की कैसे वह एक मजबूत गठबंधन का हिस्सा बन सत्ता तक पहुंच जाए इसी सोच के साथ विपक्ष के 26 दलों ने एक गठबंधन का निर्माण किया और नाम रखा “INDIA” लेकिन अब यही नाम विपक्ष के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा हैं. खासतौर पर यूपी बिहार के लिए कैसे बताते हैं आपको……………. अगले वर्ष अप्रैल-मई में संभावित लोकसभा चुनाव की तैयारी में पक्ष-विपक्ष पूरी तरह से जुट गए हैं. इस बार विपक्ष ने नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस  को काउंटर करने के लिए इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस का गठन किया है. जिसकी तीन बैठकें भी हो चुकी हैं. इस बार यूपीए बनाम एनडीए मुकाबला नहीं होगा, बल्कि ममता बनर्जी के अनुसार इस बार एनडीए से “इंडिया” जीतेगा. वहीं पिछले दो चुनाव को देखते हुए हिंदी भाषी राज्य INDIA के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे.ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, एमके स्टालिन और के. चंद्रशेखर राव के साथ होने से “इंडिया” मजबूत तो दिख रहा है. इसके बाद भी जिन हिंदी भाषी और अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्यों से केंद्र की सरकार बनती है वहां पर इनमें से नीतीश कुमार को छोड़कर अन्य किसी नेता या उसकी पार्टी का 5 प्रतिशत भी प्रभाव नहीं है, हम बात कर रहे हैं 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश, 40 सीटों वाले बिहार, 29 सीटों वाले मध्यप्रदेश, 25 सीटों वाले राजस्थान, 14 सीटों वाले झारखंड, 11 सीटों वाले छत्तीगढ़ और 5 सीटों वाले उत्तराखंड राज्य की. बीजेपी ने इन सभी राज्यों में पीएम मोदी के दम पर परचम लहराया है. यहां तक की बीजेपी ने तेलंगाना में भी सेंध लगाकर पिछले चुनाव में 4 सीटें जीत ली थीं.अगर 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर डाली जाए तो उपरोक्त हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी ने कुल 204 सीटों में 156 सीटें अकेले दम जीती हैं. बिहार को छोड़ दें तो कहीं भी बीजेपी का वोट परसेंट 50 या उससे अधिक ही रहा है. इसमें राजग के गठबंधन के साथी नहीं हैं. नीतीश कुमार की जदयू ने बिहार में 16 सीटें हासिल की थीं, जबकि रामविलास पासवान की लोकजन शक्ति पार्टी ने 6 सीटें जीती थीं. उत्तर प्रदेश में अपना दल को 2 सीटें हासिल हुई थीं.2014 के लोकसभा चुनाव से तुलना की जाए तो बीजेपी का प्रदर्शन सीटों और वोट परसेंट दोनों में मामले में सुधरा है. हां, उत्तर प्रदेश में 2014 की तुलना में सीटों में गिरावट आई थी. 2014 में बीजेपी को 71 सीटें मिली थीं, जबकि 2019 में 62 मिलीं. बीजेपी को 9 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा.ममता और नीतीश के आने के बाद भी हिंदी भाषी राज्यों पर इन दोनों की पार्टियों जदयू और तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव नहीं नजर आता. ममता बनर्जी की सारी ताकत पश्चिम बंगाल तक ही सीमित है. उसमें भी बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में 40 परसेंट से अधिक वोट बैंक की सेंध लगा दी थी. यह अलग बात है कि पंचायत चुनाव में ममता की टीएमसी का वोट बैंक 51 परसेंट तक पहुंच गया था जोकि एक रिकार्ड है. ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने पिछले लोकसभा चुनाव में 42 में से सिर्फ 24 सीटें प्राप्त की थीं, जबकि बीजेपी ने 18 सीटें हासिल की थीं.नीतीश की सर्वाधिक पकड़ कुर्मी वोटों पर है. जो करीब 16 फीसद हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश में यह वोट 6 परसेंट के करीब है. एनडीए की बात की जाए तो चिराग पासवान के पास 7 परसेंट का अच्छा-खासा पासवान वोट बैंक है. इसके अलावा मल्लाह का 5 परसेंट वोट भी मुकेश सहनी के कारण एनडीए की ओर झुक गया है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी एनडीए के साथ मिलकर 2-3 परसेंट वोटों का फायदा करा सकते हैं. इस तरह से ये तीनों मिलकर नीतीश कुमार के सीटों और वोट बैंक का गणित बिगाड़ सकते हैं. चूंकि बिहार की सारी राजनीति जातिगत आधार पर ही होती है, इसलिए ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है.