राष्ट्रपति चुनाव के बाद विपक्ष के खेमे में माहौल कुछ ठीक नहीं चल रहा है इसी बिच ममता बनर्जी ने कहा है की उनकी पार्टी उपराष्ट्रपति के चुनाव में वॉयटिंग से दुरी बनायेंगी , वही उन्होंने मार्गरेट अल्वा के चुनाव पर कहा गया की विपक्ष ने उनसे इस मुद्दे पर सलाह नहीं की है। इससे ममता बनर्जी काफी ज्यादा नाराज़ दिखी है, बता दे की ममता के अल्वा के साथ सम्बन्ध कुछ खास अच्छे नहीं है. ममता का ये निर्णय विपक्ष के लिए झटका हो सकता है। वही ममता के इस फैसले को अल्वा ने निराशाजनक बताया है उन्होंने कहा की ये अहंकार और क्रोध का समय नहीं बल्कि एकता और नेतृत्व दिखाने का समय है। ऐसे में कईं तरह के सवाल खड़े होते है की आखिर ममता ने ऐसा क्यों किया है। विपक्ष के उपराष्ट्रपति के चुनाव के उम्मीदवार के चयन में भी ममता का अलग रुख दिखा हालांकि इस बात से पार्टी ने ये कहकर पलड़ा झाड़ लिया की वो 21 जुलाई को शहीद दिवस मानाने के इंतेजामात में मशरूफ थी। जब अल्वा के नाम का एलान हुआ तब भी ममता के तरफ से कोई भी बयान नहीं आया। पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते है की ममता को पार्टी विपक्ष के नेताओं ने मायने नहीं लगाया है और उनपे विश्वास नहीं जताया है।
ममता बनर्जी ने साल 1997 में कोलकाता में एक पार्टी सम्मलेन में कांग्रेस को चुनौती दी थी , वही अल्वा ने इसे अपनी आत्मकथा ” करेज एंड कमिटमेंट” में ममता के विभिन्न मौकों पर जमकर विद्रोही रवैय्ये के बारे में लिखा था ,साथ ही बताया है की कैसे कांग्रेस ने यह अपने शान्ति दूत भेजे थे।
ममता ने हाल ही में विपक्ष के द्वारा बुलाई गयी बैठक से भी दुरी बना ली थी , इसमें कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के द्वारा बुलाई गयी बैठक सहित एनसीपी प्रमुख शरद पवार द्वारा बुलाई गयी बैठक भी उल्लेखनीय है। वही राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार चुनाव में भी ममता ने कहा की उस वक़्त भी कांग्रेस और सीपीआई(म) के संयुक्त रूप से यशवंत को चुना गया था इसमें उनका कोई भी योगदान नहीं रहा था। वही जब उनके नामांकन पात्र दाखिल करने की बात आयी तब भी उन्होंने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को भेज दिया था , वही ममता ने यशवंत को बंगाल में प्रचार के लिए भी आमंत्रित नहीं किया और उनके प्रचार से भी दुरी बना ली थी , हालांकि ममता ने उनसे अपने सभी विधायकों और संसद का समर्थन उन्हें देने की बात कही थी।
ममता के प्रवक्ता कुणाल घोष ने ये बात पहले ही साफ़ कर दी थी की ममता के लिए जो धनकड़ के लिए सम्मान है वो किसी से छुपा भी नहीं है ,और उन दोनों के बिच बतौर मुख्यमंत्री और राज्यपाल सम्बन्ध काफी मुनासिब रहे है , भले ही दोनों एक दूसरे के ऊपर तल्ख़ टिपण्णी करते नहीं थकते पर कईं मुद्दों पर उन्होंने साथ बैठ कर चर्चा भी की है और साथ बैठ कर चाय की चुस्कियां भी ली है , हालिया घटना के और अगर आपको ले जाए तो दार्जीलिंग की बात करे तो यहाँ भी मंत और धनकड़ एक साथ बैठक में नजर आये थे बस यही नहीं यहाँ तक की इस बैठक में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिश्वा भी शामिल रहे थे।
राजनीती का ऊंट कब किस करवट जाकर बैठ जाए ये कहा नहीं जा सकता है , राजनीती एक ऐसा चरित्रीतिक खेल है जिसमे लोग पहले अपना फायदा देखते है , ममता का इस तरीके से विपक्ष से दुरी बनाना विपक्ष के लिए डरावने संकेत है , अगर चुनाव में ममता ने भाजपा का समर्थन करदिया तो राजनितिक गलियारों में हड़कंप मच जाएगा , और विपक्ष को फिर मुँह छुपाने की जगह तक नहीं मिलेगी , खैर अब ये देखना काफी दिलचस्प होगा की इस बार राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है।