Meghalaya Election 2023: मेघालय चुनाव में CAA हो सकता हैं अहम मुद्दा भाजपा को हो सकता नुकसान और विपक्ष को मिलेगा फायदा …..!

मेघालय में चुनाव की तारीख नजदीक आते ही नागरिकता संशोधन अधिनियम विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच चर्चा का विषय बन गया है. आदिवासी राज्य की लगभग 80 प्रतिशत आबादी ईसाई धर्म का पालन करती है.

इसके अलावा, खासी आदिवासी लोग सीएए लाने और हिंदू बंगालियों को नागरिकता देने के भाजपा के विचार से हमेशा असहज रहे हैं. चूंकि मेघालय बांग्लादेश के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है, घुसपैठ हमेशा राज्य में एक राजनीतिक मुद्दा रहा है.

संसद में सीएए के पारित होने के बाद, नेशनल पीपुल्स पार्टी  के प्रमुख और भाजपा के पूर्व सहयोगी कॉनराड संगमा बहुत परेशान नजर आए थे और दोनों सहयोगियों के बीच तनाव था. हालांकि, चुनावों की घोषणा होने तक गठबंधन जारी रहा, लेकिन सीएए के पारित होने के बाद संगमा कभी भी सहज नहीं थे.

कॉनराड संगमा की छवि हुई धूमिल

राज्य में खासी लोगों ने इसका विरोध किया और मेघालय में इनर लाइन परमिट (आईएलपी) को लागू करने की मांग की. हालांकि, दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्रालय वहां आईएलपी शुरू करने के लिए अनिच्छुक था, और कॉनराड का मानना था कि सीएए और राजनीतिक माहौल के बाद उनकी छवि धूमिल हुई.

अब चुनाव दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, ऐसे में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सहित विपक्षी दलों ने सीएए के मुद्दे को उठाया है. वे इसे खासी मतदाताओं के बीच कॉनराड संगमा की अपील को नुकसान पहुंचाने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग कर रहे हैं.

विपक्षी कांग्रेस द्वारा 2019 में संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) में संगमा की पार्टी पर मिलीभगत का आरोप लगाया गया था.

मुद्दे को भुनाने की फिराक में प्रयासरत कांग्रेस

कांग्रेस नेता रॉनी वी लिंगदोह ने कहा, सभी क्षेत्रीय दल दोषी हैं और वे सीएए को संसद में अधिनियम बनने की गारंटी देने के लिए हाथ मिला कर काम कर रहे हैं. यदि एनपीपी ने वास्तव में सीएए का विरोध किया था और मेघालय के लोगों के हितों को पहले रखा था, तो उन्हें केंद्र सरकार का साथ छोड़ देना चाहिए था.

कांग्रेस नेता ने आगे दावा किया, दिसंबर 2019 में मेघालय विधानसभा में सभी 60 विधायकों द्वारा सीएबी के विरोध में एक औपचारिक प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी. हालांकि, तुरा से एनपीपी सांसद अगाथा संगमा ने गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संसद में बिल पेश किए जाने पर सीएबी को अपना समर्थन दिया. कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया, एनपीपी नेताओं को केवल अपने पद की चिंता है.

टीएमसी और एनपीपी भी एक दूसरे पर आक्रामक

इस बीच, एनपीपी ने अपने प्राथमिक विपक्षी तृणमूल कांग्रेस को एक बंगाली बहुल पार्टी करार देते हुए कहा कि यदि टीएमसी सत्ता में आती है तो राज्य कोलकाता से चलाया जाएगा. संगमा के लोगों ने टीएमसी नेताओं को ‘बाहरी’ करार दिया.

इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, तृणमूल भी सीएए को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है और कॉनराड संगमा पर तीखा हमला कर रही है. मेघालय टीएमसी के राज्य युवा नेता फर्नांडीज एस डखर ने पूछा, 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किसने किया था?

यह टीएमसी नहीं थी, यह एनपीपी थी. पश्चिम बंगाल में हमारी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने स्वदेशी लोगों के साथ भेदभाव करने वाले इस कानून के खिलाफ एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था.

मुख्यमंत्री के लिए परेशानी बना रहा बीजेपी का रुख

तृणमूल ने आरोप लगाया कि एनपीपी बांग्लादेशियों के पक्ष में है क्योंकि सीएए का पूरा उद्देश्य बांग्लादेश और आसपास के अन्य देशों से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को देश में आकर्षित करना है. हालांकि, कॉनराड संगमा भाजपा के साथ गठबंधन किए बिना चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन सीएए के मुद्दे पर भगवा पार्टी का रुख मेघालय के मुख्यमंत्री को परेशान करता रहा है, वह दूसरी राज्य में दूसरे कार्यकाल पर नजर गड़ाए हुए हैं.

दिल्ली में एमसीडी चुनाव  के नतीजों को आये ढाई महीने का वक्त बीत चुका है और इसके बाद 3 बार सदन की बैठक बुलाई जा चुकी है लेकिन लगातार हंगामे के बाद अब तक एमसीडी मेयर का चुनाव नहीं हो पाया है. दरअसल, आम आदमी पार्टी एल्डरमैन के वोटिंग अधिकार को लेकर लगातार विरोध में थी जिसके बाद आम आदमी पार्टी  ने सुप्रीम कोर्ट  का रुख किया था और चुनाव कराने की गुहार लगाई थी.

इसी बीच 16 फरवरी को मेयर चुनाव की तारीख तय की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 17 तारीख को सुनवाई की तारीख तय की है, जिसमें आप द्वारा पीठासीन अधिकारी के बदलने की मांग पर सुनवाई की जाएगी. अब यह साफ हो गया है कि 17 फरवरी के बाद ही दिल्ली को अपना नया मेयर मिल पायेगा. जहां तक एल्डरमैन के वोटिंग को लेकर विवाद चल रहा था, उस पर कोर्ट टिप्पणी कि एल्डरमैन सदन में वोटिंग नहीं कर सकते.

अप्रैल में फिर से होना है मेयर चुनाव

कोर्ट के फैसले के बाद ये लगभग तय हो चुका है कि मेयर AAP का ही बनने जा रहा है लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या 17 फरवरी के बाद दिल्ली को मेयर मिल पायेगा? दरअसल 31 मार्च को एमसीडी का कार्यकाल खत्म हो रहा है, जिसके बाद अप्रैल में नए सिरे से फिर से मेयर का चुनाव होना है. वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 17 तारीख को सुनवाई करने वाली है.  ऐसे में अहम सवाल ये उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी एक महीने के लिए मेयर बनाएगी या फिर इस चुनाव को अप्रैल के लिए टालेगी?