North East Election Result : त्रिपुरा मेघालय नागालैंड मे आखिर कांग्रेस को क्यों मिली हार जाने 4 बड़ी वजह ….. !

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड चुनाव के नतीजे आ गए हैं. भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने नगालैंड और त्रिपुरा में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है. मतलब दोनों राज्यों में भाजपा सरकार बनना तय है.

मेघालय में पेंच जरूर फंसा है, लेकिन यहां भी पिछली बार के मुकाबले भाजपा ने बढ़त हासिल की है. यहां एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. 2018 में एनपीपी ने भाजपा और यूडीपी के साथ मिलकर ही सरकार बनाई थी. ऐसे में पूरी संभावना है कि इस बार भी सरकार बनाने के लिए ये तीनों दल एकसाथ आ जाएं.

खैर, तीनों राज्यों के चुनावी नतीजों ने सबसे ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है. त्रिपुरा में लेफ्ट से गठबंधन करने के बाद कांग्रेस को जरूर दो सीटों की बढ़त मिली है, लेकिन यहां भी सरकार से दूर ही रहना पड़ेगा. नगालैंड में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई.

वहीं, मेघालय में 21 से पांच सीटों पर कांग्रेस आकर सिमट गई. मतलब यहां कांग्रेस को 16 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. 2018 में कांग्रेस ने यहां 21 सीटों जीतीं थीं, हालांकि बाद में इनके ज्यादातर विधायक टूटकर टीएमसी में चले गए थे.

कांग्रेस क्यों फेल हुई?

इसे समझने के लिए हमने पूर्वोत्तर राज्यों की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक संजय मिश्र से बात की. उन्होंने कांग्रेस के फेल होने के कुछ कारण बताए.

  1. कांग्रेस के बड़े नेताओं ने बना रखी थी दूरी : पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों में कांग्रेस ने कोई मेहनत नहीं की. राहुल गांधी ने केवल मेघालय में एक चुनावी रैली की. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी कम ही नजर आए. राहुल, खरगे समेत सभी बड़े नेताओं के इससे दूर रहने की बड़ी वजह यह हो सकती है, जबकि इनके मुकाबले भाजपा कहीं ज्यादा सक्रिय दिखी.
  2. पहले से मान ली थी हार : जिन तीन राज्यों में चुनाव हुए, उनमें से दो में पिछली बार कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी. ये राज्य त्रिपुरा और नगालैंड हैं. यही कारण है कि त्रिपुरा में कांग्रेस ने खुद से कहीं ज्यादा सीटें लेफ्ट को दे दी. गठबंधन का फायदा कांग्रेस को मिला. लेफ्ट के वोट तो कांग्रेस को ट्रांसफर हो गए, लेकिन कांग्रेस के वोटर्स लेफ्ट की तरफ नहीं गए. इसका खामियाजा लेफ्ट को भुगतना पड़ा. कांग्रेस को इस चुनाव में दो सीटों की बढ़त मिली.
  3. भाजपा और क्षेत्रीय दलों का बढ़ता वर्चस्व : हर राज्य में क्षेत्रीय दलों का अपना अलग वोटबैंक होता है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर अलग. तीनों ही राज्यों में भाजपा अपनी पकड़ बना चुकी है. क्षेत्रीय दल भी अलग-अलग स्तर से कांग्रेस का वोट काट रहे हैं. क्षेत्रीय दलों के बढ़ते वर्चस्व के चलते भी कांग्रेस काफी कमजोर हो चुकी है.
  4. जनता से दूरी : लगातार चुनावों में मिल रही हार से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं में मायूसी भी छा गई है. यही कारण है कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता जनता से भी दूर होते जा रहे हैं. इसका नुकसान भी कांग्रेस को चुनावों में उठाना पड़ा.