त्रिपुरा चुनाव में कानून-व्यवस्था और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दों में से शामिल हैं. इसके अलावा सभी पार्टियां आदिवासी समुदाय के वोट को साधने के लिए उनके लिए विभिन्न विकास योजनाओं की बात कर रही हैं.राज्य के सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली भी एक बड़ा मुद्दा है, वहीं कोर्ट के आदेश पर बर्खास्त हुए 10,000 से अधिक सरकारी शिक्षक अपनी दोबारा नियुक्ति किए जाने की मांग कर रहे हैं. बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ भी एक मुद्दा है.
टिपरा मोथा ने क्या वादे किए हैं?
नई आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा को लगता है कि स्वदेशी लोग अपनी ही मातृभूमि में अल्पसंख्यक बन गए हैं क्योंकि बांग्लादेश से हिंदू प्रवासियों की बाढ़ आ गई है, इसलिए पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में एक अलग राज्य ‘ग्रेटर तिप्रालैंड’ के लिए लड़ने का वादा किया है.
इसके अलावा 20,000 नई नौकरियां, आदिवासी परिषद के लिए एक पुलिस बल की स्थापना और आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों के लिए पुनर्वास पैकेज जैसे वादे भी घोषणापत्र में शामिल हैं.
भाजपा ने क्या वादे किए हैं?
सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि त्रिपुरा में लगातार दूसरी बार सत्ता में आने पर वह आदिवासी क्षेत्रों के लिए अधिक स्वायत्तता, किसानों की आर्थिक सहायता और रबर आधारित उद्योग के क्षेत्रों में वृद्धि करेगी.
पार्टी ने कहा है कि सत्ता में आने पर अनुकुल चंद्र के नाम पर लोगों के लिए पांच रुपये में भोजन योजना शुरू करने के साथ ही राजधानी अगरतला में एक क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान की स्थापना भी की जाएगी.
कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली का किया वादा
कांग्रेस ने गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए 20 सूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया है. पार्टी ने कहा कि सत्ता मिलने पर राज्य के सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को वापस लाया जाएगा.
पार्टी ने अगले पांच साल में रोजगार के 50,000 अवसर सृजित करने के साथ-साथ चाय बागान में काम करने वाले खेतिहर मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने की बात भी कही है.
वाम गठबंधन ने क्या वादे किए हैं?
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले वाम गठबंधन ने अपने घोषणापत्र में अगले पांच वर्षों में सरकारी और निजी क्षेत्र में 2.5 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया है.
गठबंधन ने राज्य के हर परिवार को 50 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने, गरीब लोगों को जमीन का आवंटन और सरकारी शिक्षण संस्थानों के निजीकरण पर रोक लगाने का वादा भी किया है.
10,000 से अधिक बर्खास्त शिक्षकों की फिर से नियुक्ति का वादा भी किया गया है.
किसका पलड़ा है भारी?
त्रिपुरा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होने से कांग्रेस-वाम गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद है. भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस और वामदलों में पहली बार गठबंधन हुआ है और इससे पहले दोनों पक्ष यहां हमेशा से एक-दूसरे के धुर-विरोधी रहे हैं.
इस गठबंधन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ रही है.भाजपा को भी रेस से बाहर नहीं माना जा सकता और वह नतीजों से चौंकाने का माद्दा रखती है.
पिछली बार क्या रहे थे नतीजे?
भाजपा ने 2018 में हुए पिछले त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में 43.59 प्रतिशत वोट के साथ 36 सीटें हासिल की थीं और बिप्लब कुमार देब को मुख्यमंत्री बनाया था. वाम गठबंधन 42.2 प्रतिशत वोट प्राप्त करने के बावजूद सिर्फ 16 सीटें हासिल कर पाया था.
इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा IPFT ने आठ सीटें जीती थीं. भाजपा ने पिछले साल मई में बिप्लब कुमार देब की जगह माणिक साहा को त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बना दिया था.