भारत में बढ़ती महंगाई, क्या देश को खतरा ?

दुनिया भर में महंगाई बेकाबू होने की खबरें आ रही हैं. खाद्य पदार्थों की कीमते आसमान छू रही हैं तो कई देशों ने गेहूं, चीनी, तेल, मांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस प्रतिबंध ने महंगाई को और बढ़ा दिया है . भारत में डीजल-पेट्रोल के साथ ही जरूरी चीजों के दाम बढ़ते जा रहे है. पहले नीबू फिर टमाटर के दाम में तीन गुना बढ़ने की खबर आ रही है. टमाटर की कीमतों में लगातार इ़जाफा हो रहा है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो टमाटर की कीमतों का ग्राफ 1 महीने में 3 गुना ऊपर छलांग लगा चुका है. वहीं इसकी एक बड़ी वजह सप्लाई में कमी होना माना जा रहा है. कई शहरों में 1 किलोग्राम टमाटर का भाव 100 रुपये के भी पार पहुंच चुका है. राजधानी दिल्ली की बात करें तो 1 किलोग्राम टमाटर की कीमत 40 से 70 रुपये के बीच बनी हुई है.

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महंगाई के साथ ही कई देशों की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है. श्रीलंका और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है. पश्चिमी अफ़्रीका के सेनेगल में मांस की कीमतों में ज़बरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है. यूरोप के देशों में गेंहू, तेल और रसोई ईंधन की कीमतें भी बढ़ गईं तो सिंगापुर में मांस के दाम में जबरदस्त इजाफा हुआ है. क्योंकि मलेशिया ने चिकन के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दी है. मलेशिया घरेलू खाद्य आपूर्ति को बढ़ावा देने और सुरक्षित भंडार रखने के तहत यह कदम उठाया है. मलेशिया के इस कदम से पड़ोसी सिंगापुर में संकट पैदा होने की संभावना है जहां चिकन चावल एक राष्ट्रीय व्यंजन है. मलेशिया के प्रधानमंत्री इस्माइल साबरी याकूब ने पिछले हफ्ते घोषणा की कि, 1 जून से, मलेशिया घरेलू कीमतों और उत्पादन स्थिर होने तक एक महीने में 3.6 मिलियन चिकन के निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगा.

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दुनिया भर में बढ़ रही महंगाई के पीछे विशेषज्ञों ने खास कारण बताए हैं. पहला, कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में लंबे समय तक उत्पादन बंद रहा. जिससे जरूरी चीजों के दमा बढ़ गए. दूसरा, रूस-यूक्रेन युद्ध. 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. उसी वक़्त ये जाहिर हो गया कि लड़ाई का असर सिर्फ़ इन दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा. युद्ध की वजह से दुनिया भर में महंगाई और बेरोजगारी आयेगी.

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युद्ध की वजह से जर्मनी में कीमतों को तेज़ी से बढ़ते देखा जा सकता है. जर्मनी में महंगाई बढ़ रही है. पेट्रोल और गैस के दाम 50 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ गए हैं. जर्मनी के लोग सामान जमा करके रखना पसंद करते हैं. वो बाहर जाकर बहुत सारा गेहूं, सूरजमुखी का तेल और टॉयलेट पेपर ले आए. जैसे कि महामारी के दौरान किया था.\

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यूक्रेन युद्ध की वजह से गेंहू, तेल और रसोई ईंधन की कीमतें भी बढ़ गईं. सेनेगल इस दिक्कत से जूझता इकलौता देश नहीं है. भारत समेत दुनिया भर में करोड़ों लोगों के सामने बढ़ती महंगाई के बीच घरेलू बजट संभालने की चुनौती है. बीते साल अमेरिका का केंद्रीय बैंक एक अजब समस्या से जूझ रहा था. कोरोना महामारी से जुड़ी पाबंदियां हटाते ही देश में कीमतें बढ़ने लगीं और बैंक के सामने ये सवाल था कि क्या स्थिति संभालने के लिए उसे कदम उठाने चाहिए?

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आम तौर पर जब कीमतें तेज़ी से ऊपर जाने लगती हैं, तब केंद्रीय बैंक कर्ज़ लेने की दर बढ़ा देते हैं. ताकि लोग सामान खरीदने के लिए कर्ज़ लेने बंद कर दें. इससे मांग में कमी आती है और कीमतें स्थिर होने लगती हैं. लेकिन अमेरिका के फेडरल रिज़र्व और तमाम दूसरे केंद्रीय बैंकों की राय थी कि अर्थव्यवस्था जैसे ही पटरी पर लौटेगी महंगाई छू मंतर होने लगेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

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एक साल पहले से तुलना करें तो हम कई देशों की अर्थव्यवस्था में काफी तेज़ वृद्धि देख रहे थे. 2020 में जब कोरोना महामारी फैल रही थी तब अर्थव्यवस्था की तरक्की से लेकर महंगाई तक सबकुछ बहुत नीचे चला गया था. लॉकडाउन के दौरान लोग ना के बराबर खर्च कर रहे थे. ऐसे में उस वक़्त महंगाई दिखाई नहीं दे रही थी.

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लेकिन बीते साल के आखिर तक कीमतों के स्थिर हो जाने की उम्मीदें टूटने लगीं. इस साल की शुरुआत में महंगाई ने कई दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. अब महंगाई रोकने के लिए ब्याज़ दर बढ़ाने और ग्रोथ रेट पर इसके संभावित असर के बीच संतुलन बिठाने की कोशिश हो रही है. ये बड़ा पेचीदा काम है. क्योंकि आप सिर्फ़ अनुमान लगा रहे होते हैं. आप यकीन से नहीं कह सकते हैं कि ऐसा होगा ही.

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